देश का 12% भौगोलिक क्षेत्र भारतीय शुष्क क्षेत्र के अन्तर्गत आता है जिसमें 31.7 मिलियन हे. गर्म रेगिस्तान तथा 7 मिलियन हे. ठण्डे रेगिस्तान के अन्तर्गत आता है। गर्म रेगिस्तानी क्षेत्र में कम उत्पादन और आधारभूत ढ़ाचे में कम और अनियमित वर्षा (100-420 मिमी/वर्ष) उच्च वाष्पन दर (1500-2000 मिमी/वर्ष) और मृदा और उर्वरता की खराब स्थितियाँ प्रमुख बाधाएँ हैं। स्थानीय निवासियों ने कृषि पशुपालन और वानिकी हेतु उचित भू प्रयोग और प्रबंधन पद्धतियाँ विकसित की परन्तु कालान्तर में वे बढ़ती आवश्यकताओं के कारण अपर्याप्त सिद्ध हुई। इसका परिणाम संसाधनों का अति-विदोहन हुआ जिसके परिणाम स्वरूप भूमि का तीव्रता से अवह्वास हुआ एवं उत्पादकता में कमी हुई। इस अवह्वास की प्रक्रिया को कम करने एवं संसाधनों के वैज्ञानिक एवं स्थाई प्रबंधन हेतु 1952 में मरू वनीकरण केन्द्र की स्थापना जोधपुर में की गई। जिसका बाद में विस्तार 1967 में मरू वनीकरण एवं मृदा संरक्षण केन्द्र के रूप में हुआ तथा अन्ततः भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अधीन इसे केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के रूप में 1959 में पूर्ण संस्थान का दर्जा दिया गया। काजरी जोधपुर स्थित मुख्यालय में 6 संभाग है। इसके चार क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्र विभिन्न कृषि-जलवायु स्थितियों में स्थानाधारित समस्यानुगत अनुसंधान हेतु स्थित है।